Tuesday, July 24, 2012

“Thandi Hawaein, Lehra Ke aayein” – Nalini Jaywant

ठंडी हवाएं लहरा के आएं” – नलिनी जयवंत

                   .......शिशिर कृष्ण शर्मा

इस बात से सभी लोग वाक़िफ़ हैं कि शुरूआती दौर में अच्छे घरों के लोगों का फ़िल्मों में काम करना बुरा समझा जाता था। इसके बावजूद दुर्गा खोटे, लीला चिटणिस, शोभना समर्थ, वनमाला और शांता आप्टे जैसी सम्भ्रांत परिवारों से आई अदाकाराओं ने तमाम पारिवारिक और सामाजिक विरोध की परवाह किए बग़ैर फ़िल्मों में कदम रखा और भरपूर शोहरत कमाई। इसी सूची में एक नाम था नलिनी जयवंत का जो एक परंपरावादी मध्यमवर्गीय मराठी परिवार में जन्मी थीं। क़रीब 25 बरस के अपने करियर के दौरान अपनी बेपनाह ख़ूबसूरती और अद्भुत अभिनय क्षमता के दम पर उन्होंने भरपूर नाम कमाया और फिर बदलते वक़्त के साथ ख़ुद को तमाम चमक-दमक भरी फ़िल्मी दुनिया से अलग कर लिया। साल 1941 में बनी फ़िल्मराधिकासे फ़िल्मी दुनिया में कदम रखने वालीनलिनी जयवंतकी बतौर नायिका आख़िरी फ़िल्मबॉम्बे रेसकोर्ससाल 1965 में रिलीज़ हुई थी। क़रीब 18 सालों बाद एक बार फिर वो फ़िल्मनास्तिक(1983) में नज़र आयीं। लेकिन चरित्र अभिनय का ये दौर उन्हें रास नहीं आया और उन्होंने हमेशा के लिए फ़िल्मी दुनिया को अलविदा कह दिया। क़रीब 22 सालों की गुमनामी भरी ज़िंदगी जीने के बाद नलिनी जयवंत एक बार फिर से चर्चा में आयीं जब 30 अप्रैल 2005 को मुंबई की जानी-मानी संस्थादादासाहब फाल्के एकेडमीने फाल्के की 136वीं जयंती पर आयोजित समारोह में उन्हें लाईफ़टाईम अचीवमेंट अवॉर्ड से नवाज़ा था। लेकिन उसके बाद वो हमेशा के लिए गुमनामी में चली गयीं।

दादासाहब फाल्के एकेडमीअवॉर्ड समारोह से क़रीब 4 रोज़ पहले चेम्बूर के यूनियन पार्क स्थित नलिनी जयवंत के बंगले पर हुई मुलाक़ात के दौरान मेरे साथ उन्होंने अपनी ज़िंदगी के तमाम पहलुओं पर विस्तार से बातचीत की थी। उन्होंने बताया था कि वो मुंबई के गिरगांव इलाक़े में जन्मीं और पली-बढ़ी थीं और उनके पिता कस्टम अधिकारी थे। दो भाईयों के बीच वो अकेली बहन थीं। नलिनी जयवंत को बचपन से ही डांस का शौक़ था और उन्होंने मोहन कल्याणपुर से कत्थक की शिक्षा भी ली थी। इसके साथ ही उन्होंने हीराबाई ज़वेरी से गायन भी सीखा था। उनके मुताबिक़स्वास्तिक, ड्रीमलैंड और इम्पीरियल सिनेमाहॉल मेरे घर के आसपास ही थे इसलिए मन में फ़िल्मों के प्रति खिंचाव भी था। लेकिन उस ज़माने के माहौल को देखते हुए सोच भी नहीं सकती थी कि मैं कभी फ़िल्मों में काम करूंगी। हालांकि शोभना समर्थ मेरी सगी बुआ की बेटी थीं जो तब तक फ़िल्मों में अच्छा-ख़ासा मुक़ाम हासिल कर चुकी थीं, लेकिन उनसे भी मेरे पिता ख़ुश नहीं थे।

उस ज़माने में एक बहुत बड़ा नाम था प्रोड्यूसर चिमनलाल देसाई का, जिन्होंनेसागर मूवीटोन, ‘नेशनल स्टूडियोऔरअमर पिक्चर्सके बैनरों मेंजजमेण्ट ऑफ़ अल्लाह, ‘मनमोहन, ‘ग्रामोफ़ोन सिंगर, ‘वतन, ‘औरत, ‘निर्दोष, ‘राधिका, ‘रोटी, ‘आंख मिचौली, ‘आदाब अर्ज़और ग्वालन जैसी क़रीब 75 फ़िल्में बनाई थीं। मोतीलाल नेसागर मूवीटोनकी ही फ़िल्मशहर का जादू(1934) से फ़िल्मी दुनिया में कदम रखा था तोजजमेंट ऑफ़ अल्लाहउर्फ़अल-हिलाल(1935) महबूब ख़ान की बतौर निर्देशक और सितारादेवी की बतौर अभिनेत्री पहली फ़िल्म थी। इससे पहले सितारा देवी 5-6 फ़िल्मों में बतौर डांसर काम कर चुकी थीं।सागर मूवीटोनकी ही फ़िल्मडेकन क्वीन(1936) से गायक-अभिनेता सुरेन्द्र ने करियर की शुरूआत की तो इसी बैनर कीजागीरदार(1937), ‘ग्रामोफ़ोन सिंगर, ‘वतन(दोनों 1938) औरएक ही रास्ता(1939) जैसी फ़िल्मों ने अनिल बिस्वास को चोटी के संगीतकारों में ला खड़ा किया था।सागर मूवीटोनकी ही अनिल बिस्वास द्वारा संगीतबद्ध फ़िल्ममहागीत(1937) मुंबई में बनी पहली फ़िल्म थी जिसमें पहली बार प्लेबैक का इस्तेमाल किया गया था। उधर चिमनलाल देसाई के, यूसुफ़ फ़ज़लभाई के साथ पार्टनरशिप में बनाए गएनेशनल स्टूडियोकी ही फ़िल्मनिर्दोष(1941) से मुकेश ने बतौर गायक-अभिनेता करियर शुरू किया था तो नलिनी जयवंत को परदे पर लाने वाला बैनर भीनेशनल स्टूडियो’  ही था।

नलिनी जयवंत के मुताबिक़ एक रोज़ शोभना समर्थ के घर, नूतन के जन्मदिन के मौक़े पर उनकी मुलाक़ात चिमनलाल देसाई से हुई जो उन दिनोंनेशनल स्टूडियोके बैनर में फ़िल्मराधिकाकी तैयारियों में जुटे हुए थे। नलिनी जयवंत की उम्र उस वक़्त 14 बरस की थी। चिमनलाल देसाई ने उन्हें फ़िल्मराधिकाकी मुख्य भूमिका में लेने की इच्छा जताई जिसके लिए नलिनी के पिता ने साफ इंकार कर दिया। लेकिन चिमनलाल  ने हार नहीं मानी। आख़िरकार नलिनी के पिता को चिमनलाल  की ज़िद के आगे झुकना ही पड़ा।

साल 1941 में रिलीज़ हुई फ़िल्मराधिकाका निर्देशन चिमनलाल देसाई के बेटे वीरेन्द्र देसाई ने किया था। इस फ़िल्म के हीरो थे हरीश जिन्होंने आगे चलकरतारा हरीशके नाम सेकाली टोपी लाल रूमाल, ‘दो उस्ताद, ‘नकली नवाबऔरबर्मा रोडजैसी फ़िल्में निर्देशित की थीं। नलिनी जयवंत ने अशोक घोष के संगीत निर्देशन में फ़िल्मराधिकामें 3 सोलो और हरीश, नूरजहां और मारूतिराव के साथ मिलकर 4 डुएट्स गाए थे। उनकी शुरूआती 5 में से 3 फ़िल्मेंराधिका, ‘बहन, ‘निर्दोष(तीनों 1941) ‘नेशनल स्टूडियोके और 2 फ़िल्मेंआंख मिचौली(1942) औरआदाब अर्ज़(1943) ‘अमर पिक्चर्सके बैनर में बनी थीं। फ़िल्मबहनमें नलिनी ने 4, ‘निर्दोषमें 6, ‘आंखमिचौलीमें 7 औरआदाब अर्ज़में 4 गीत गाए थे।

साल 1945 में नलिनी ने उम्र में काफ़ी बड़े और पहले से शादीशुदा, वीरेन्द्र देसाई से शादी कर ली। हिंदी के मशहूर कहानीकार उपेन्द्रनाथअश्क, जिन्हें साल 1945 में बनीफ़िल्मिस्तानकी फ़िल्ममज़दूरके लिएबंगाल बोर्ड ऑफ़ फ़िल्म जर्नलिस्ट्सकी तरफ़ से सर्वश्रेष्ठ संवाद लेखक का पुरस्कार दिया गया था, अपनी क़िताबफ़िल्मी दुनिया की झलकियांमें लिखते हैं कि बीवी-बच्चों के होते हुए दूसरी शादी कर लेने की वजह से वीरेन्द्र देसाई को उनके घर और बिज़नेस से बेदख़ल कर दिया गया था। ऐसे मेंनेशनल स्टूडियोऔरअमर पिक्चर्ससे नलिनी जयवंत का रिश्ता टूटना भी स्वाभाविक ही था। मजबूरन वीरेन्द्र देसाई और नलिनी कोफ़िल्मिस्तान फ़िल्म कंपनीके साथ कॉंट्रेक्ट करना पड़ा और वोफ़िल्मिस्तानके पास ही मालाड में किराए के एक बंगले में रहने लगे।

अश्कके मुताबिक़ उस दौरानफ़िल्मिस्तानके बैनर मेंशिकारी, ‘सफ़रऔरएट डेज़जैसी फ़िल्में बनीं जिनमें वीरा, पारो और शोभा आदि को बतौर नायिका की लिया गया लेकिन तो नलिनी को अभिनय का मौक़ा दिया गया और ही वीरेन्द्र देसाई को निर्देशन का। उन दोनों को बिना काम किए हर महिने दो हज़ार रूपया बतौर वेतन दे दिया जाता था।

अश्कके मुताबिक, नलिनी को काम मिलने की वजह शायद वीरेन्द्र देसाई और नलिनी की ये शर्त रही हो कि नलिनी सिर्फ़ वीरेन्द्र देसाई के निर्देशन में काम करेंगी। लेकिनअश्कये भी कहते हैं, “हो सकता है कि फ़िल्म के परदे पर नलिनी की सफलता को देखकर शशधर मुकर्जी नेफ़िल्मिस्तानकी पहली फ़िल्मचल चल रे नौजवानकी नायिका नसीम का रास्ता साफ़ करने के लिए दो साल का अनुबंध करके नलिनी को बैठा दिया हो, और यही अंतिम बात मुझे सही लगती है।“ ‘अश्क, जो उन दिनों वीरेन्द्र देसाई के लिए किसी फ़िल्म की कहानी लिख रहे थे, ये भी कहते हैं, “तभी मुझे पता चला कि ऊपर से ख़ूब मज़े से रहते दिखाई देने वाले डायरेक्टर वीरेन्द्र देसाई और नलिनी जयवंत अंदर से बहुत परेशान और कुंठित हैंऔरइस बीच नलिनी का नाम फ़िल्मी दर्शक लगभग भूल गए। देसाई के निर्देशन की शर्त रखकर नलिनी ने अपना बहुत अहित किया।

नलिनी जयवंत के मुताबिक़ महज़ 3 साल के अंदर, साल 1948 में उनकी शादी टूट गयी। उस दौरान उनकी सिर्फ़ एक फ़िल्म, ‘वीनस पिक्चर्सकीफिर भी अपना है(1946) प्रदर्शित हुई थी, जो बहुत लंबे समय से बन रही थी।फ़िल्मिस्तानका कॉंट्रेक्ट ख़त्म होने और वीरेन्द्र देसाई से अलग होने के बाद उनके करियर ने एक बार फिर से रफ़्तार पकड़ी। 

दिलीप कुमार के साथ उनकीअनोखा प्यार, त्रिलोक कपूर के साथगुंजन(दोनों 1948), भारतभूषण के साथचकोरी (1949), शेखर और भारतभूषण के साथआंखें, देवानंद के साथहिंदुस्तान हमाराऔर किशोर कुमार और सज्जन के साथमुक़द्दर(सभी 1950) रिलीज़ हुईं। फ़िल्मगुंजनका निर्माणनलिनी प्रोडक्शंसके बैनर में हुआ था जिसका निर्देशन वीरेन्द्र देसाई ने किया था तो निर्माता-निर्देशक देवेन्द्र गोयल की फ़िल्मआंखेंसे संगीतकार मदनमोहन ने करियर की शुरूआत की थी। नलिनी जयवंत ने फ़िल्मगुंजनमें 6, ‘चकोरीमें 1 औरमुक़द्दरमें 3 गीत भी गाए थे। लेकिन ये तमाम फ़िल्में कोई ख़ास करिश्मा नहीं दिखा पायीं। सही मानों में नलिनी को स्टार का दर्जा हासिल हुआफ़िल्मिस्तानकी ही फ़िल्मसमाधिसे जो साल 1950 में प्रदर्शित हुई थी। उधर उसी सालबॉम्बे टॉकीज़के बैनर में बनी उनकी फ़िल्मसंग्रामभी कामयाब रही। इन दोनों ही फ़िल्मों के हीरो अशोक कुमार और संगीतकार सी.रामचन्द्र थे।

1950 का दशक नलिनी के लिए बेहद व्यस्तताओं भरा रहा। साल 1951 से 1960 के बीच उनकीभाई का प्यार, ‘एक नज़र, ‘जादू, ‘नंद किशोर, ‘नौजवान(सभी 1951) / ‘दोराहा, ‘जलपरी, ‘क़ाफिला, ‘नौबहार, ‘सलोनी(1952) / ‘राही, ‘शिकस्त(1953) / ‘बापबेटी, ‘कवि, ‘लकीरें, ‘महबूबा, ‘नाज़, ‘नास्तिक(1954) / ‘चिंगारी, ‘जय महादेव, ‘लगन, ‘मुनीमजी, ‘रेलवे प्लेटफ़ॉर्म, ‘राजकन्या(1955) / ‘आनबान, ‘आवाज़, ‘दुर्गेशनंदिनी, ‘फ़िफ़्टी-फ़िफ़्टी, ‘हम सब चोर हैं, ‘इंसाफ़, ‘सुदर्शनचक्र, ‘भारती(1956) / ‘कितना बदल गया इंसान, ‘मिस बॉम्बे, ‘मिस्टर एक्स, ‘नीलमणि, ‘शेरू(1957) / ‘काला पानी, ‘मिलन(1958) / ‘मां के आंसू(1959) / ‘मुक्ति(1960) समेत कुल 41 फ़िल्में प्रदर्शित हुईं। फ़िल्मनाज़(1954) विदेश में फ़िल्मायी गई पहली हिंदी फ़िल्म थी जिसकी शूटिंग काहिरा और लंदन में हुई थी।मुनीमजी(1955) सुबोध मुकर्जी की बतौर निर्देशक पहली फ़िल्म थी तो उसी साल बनीरेलवे प्लेटफ़ॉर्मसे सुनील दत्त ने फ़िल्मी दुनिया में कदम रखा था। उधर फ़िल्मचिंगारी(1955) में नलिनी जयवंत ने एक बार फिर से एक गीत गाया था।

1960 के दशक में नलिनी जयवंत ने सिर्फ़ 5 फ़िल्मों में काम किया। ये फ़िल्में थीं, ‘अमर रहे ये प्यार, ‘सेनापति(1961) / ‘गर्ल्स हॉस्टल, ज़िंदगी और हम(1962) / ‘बॉम्बे रेसकोर्स(1965) फ़िल्मअमर रहे ये प्यारका निर्माण अपने जमाने के मशहूर चरित्र अभिनेता राधाकिशन (मेहरा) ने किया था जो मूल रूप से पुरानी दिल्ली के एक खत्री परिवार से थे। इस फ़िल्म के निर्देशन की ज़िम्मेदारी उन्होंने अपने क़रीबी दोस्त प्रभुदयाल को सौंपी थी जो इससे पहलेहाऊस नं.44’, ‘मुनीमजी, ‘सी.आई.डी.’, नयी दिल्ली, ‘दुश्मन, ‘लाजवंती, ‘काला बाज़ारऔरएक के बाद एकमें अभिनय करने के अलावाफ़रारऔरकालापानी जैसी फ़िल्मों में सह-निर्देशक रह चुके थे। लेकिन इस फ़िल्म की असफलता ने राधाकिशन को इतना ज़बर्दस्त आर्थिक नुक़सान पहुंचाया कि उन्होंने पैडर रोड स्थित अपनी बिल्डिंग की छत से कूदकर जान दे दी थी।

प्रभुदयाल फ़िल्ममुनीमजीमें नलिनी जयवंत के साथ काम कर चुके थे। फ़िल्मअमर रहे ये प्यारके दौरान उन दोनों ने शादी कर ली। आगे चलकर प्रभुदयाल नेहम दोनोंऔरदुनियाजैसी फ़िल्मों में अभिनय के अलावाहम दोनों, ‘तेरे घर के सामनेऔरगैम्बलरमें बतौर सहनिर्देशक काम किया। लेकिन नलिनी जयवंत फ़िल्मबॉम्बे रेसकोर्सके बाद फ़िल्मी दुनिया से अलग होकर अपनी गृहस्थी संभालने में व्यस्त हो गयीं। 

क़रीब 18 साल बाद एक बार फिर से वो साल 1983 में प्रदर्शित हुई फ़िल्मनास्तिकमें नायक अमिताभ बच्चन की मां की भूमिका में नज़र आयीं लेकिन चरित्र अभिनय का ये दौर उन्हें रास नहीं आया। नलिनी के मुताबिक़,  “उस फ़िल्म को स्वीकार करना मेरी सबसे बड़ी भूल थी। जैसी भूमिका मुझे सुनाई गयी थी, फ़िल्म में वैसा कुछ था नहीं। ये मेरे लिए किसी सदमे से कम नहीं था इसलिए मैंने फ़िल्मी दुनिया से हमेशा के लिए किनारा कर लेना बेहतर समझा  

साल 1983 में बनी फ़िल्मनास्तिकको छोड़ दिया जाए तो साल 1941 से 1965 के 25 सालों के अपने करियर में नलिनी ने 60 फ़िल्मों में नायिका की भूमिका निभायी। इनमें से साल 1946 में बनी फ़िल्मफिर भी अपना हैको 1951 मेंभाई का प्यारके नाम से दोबारा प्रदर्शित किया गया था। अशोक कुमार और अजीत के साथ नलिनी जयवंत की जोड़ी ख़ूब जमी। इन दोनों ही अभिनेताओं के साथ नलिनी ने 10-10 फ़िल्मों में काम किया। फ़िल्मनिर्दोष(1941) औरनंदकिशोर(1951) हिंदी के साथ ही मराठी भाषा में भी बनी थीं तो नलिनी ने एक गुजराती फ़िल्मवारसदार(1948) में भी काम किया। इसके अलावा उन्होंने 9 फ़िल्मों में कुल मिलाकर 39 गीत भी गाए। 


साल 2001 में प्रभुदयाल के गुज़रने के बाद नलिनी जयवंत अपने विशाल बंगले में बिल्कुल अकेली रहती थीं। पास ही में उनके भाई का बेटा और उसका परिवार रहता था जो नलिनी की देखभाल करता था। 18 फ़रवरी 1926 को जन्मीं नलिनी जयवंत का देहांत क़रीब 85 साल की उम्र में 22 दिसंबर 2010 को हुआ। उनका अंतिम संस्कार और मृत्यु के बाद के तमाम पारंपरिक अनुष्ठान उनके भतीजे द्वारा अपने घर से किए गए। नलिनी के निधन के फ़ौरन बाद उनके बंगले पर लटके ताले को देखकर मीडिया में खलबली मच गयी और बिना सच्चाई जाने नलिनी के निधन कोरहस्यमय मौतक़रार दे दिया गया। ये हरक़त भारतीय मीडिया, और ख़ासतौर से इलैक्ट्रॉनिक मीडिया के खोखले चरित्र को पूरी तरह से उजागर कर देती है।

We are thankful to –

Mr. D.B.Samant, Mr. Harish Raghuvanshi, Mr. Harmandir Singh ‘Hamraz’ & Mr. Biren Kothari for their valuable suggestion, guidance, and support.

Mr. S.M.M.Ausaja for providing movies’ posters.

Ms. Akhsher Apoorva for the English translation of the write up.

Mr. Manaswi Sharma for the technical support including video editing.

Nalini Jaywant on YT Channel BHD



Thandi Hawaein, Lehra Ke aayein” – Nalini Jaywant

                                  ........Shishir Krishna Sharma

It’s a well-known fact that initially the people connected with films were not viewed upon agreeably and working in films was a taboo in respectable families. Still the actresses like Durga Khote,  Leela Chtnis, Shobhna Samarth, Vanmala and Shanta Apte who despite all the opposition from their families and society carved their future in cinema on the basis of their talent, diligence and hard work, engraved their names in golden letters in the history of cinema.  Among them, one was Nalini Jaywant who was born in a middle-class traditional Marathi family.  In a career of around 25 years she earned all name and fame based on her eternal beauty and amazing acting abilities and then with the change of time she left the glittering world of cinema. Nalini Jaywant entered the film world with 1941 release ‘Radhika’ and her last film in main lead was ‘Bombay Racecourse‘, which released in 1965. After a gap of 18 years she was once again seen in 1983 release ‘Nastik’. But she couldn’t cope with this new avatar of a character artist and subsequently she said goodbye to the films forever. After a span of around 22 years she came out of her self-imposed exile to be honored with Lifetime Achievement Award presented to her by Mumbai’s well-known organization ‘Dada Saheb Phalke Academy’ on 30th April 2005. The occasion was Phalke’s 136th jubilee function held at Bhaidass Hall at Vile Parle (West). But after that she went back to her exile.

Just 4 days prior to the ‘Dada Saheb Phalke Academy’ Award during a meeting at her bungalow situated at Chembur’s Union Park, Nalini Jaywant spoke in detail about her private and professional life. She was born and brought up at Mumbai’s Girgaum area as a daughter of a custom officer. She was the only sister among 2 brothers. Nalini Jaywant was inclined towards dance since childhood and she took lessons in Kathak from Mohan Kalyanpur. Simultaneously she learned vocal music from Heerabai Zaveri. According to Nalini, “Swastik, Dreamland and Imperial Cinema halls were very near to her house thus there was an inclination towards films as well but taking into consideration the mindset of then society she couldn’t even think of working into films. Till that time my paternal aunt’s daughter Shobhna Samarth had already become an established name into Hindi cinema yet my father wasn’t happy with her though.“

Producer Chimanlal Desai was a big name at that time, who produced around 75 films like ‘Judgement Of Allah’, ‘Manmohan’, ‘Gramophone Singer’, ‘Watan’, ‘Aurat’, ‘Nirdosh’, ‘Radhika’, ‘Roti’, ‘Aankh Micholi’, ‘Adaab Arz’ and Gwalan under the banners ‘Sagar Movietone’, ‘National Studio’ and ‘Amar Pictures’. Where Motilal entered the films with ‘Sagar Movietone’s film ‘Shaher Ka Jadoo’ (1934), ‘Judgement Of Allah’ alias ‘Al-Hilal’ (1935) was Mehboob Khan’s and Sitara Devi’s debut film as director and actress respectively. Prior to this, Sitara Devi was seen as dancer in around 5-6 films.  ‘Sagar Movietone’s ‘Deccan Queen’ (1936) was the one which singer-actor Surendra started his career with then films like ‘Jagirdar’ (1937), ‘Gramophone Singer’, ‘Watan’ (both 1938) and ‘Ek Hi Rasta’ (1939) of the same banner made Anil Biswas one of the topmost composers of his time. ‘Sagar film Company’s’ film ‘Mahageet’ (1937), composed by Anil Biswas was the first film to be made in Mumbai where playback was used for the first time. Mukesh also started his career as singer-actor with the film ‘Nirdosh’ (1941) made under the banner of ‘National Studio’ which was founded by Chimanlal Desai in partnership with Yusuf Fazalbhoy.  Nalini Jaywant was also introduced as actress by the banner of ‘National Studio’ only.

As per Nalini Jaywant, once at Shobhna Samarth’s home in Nutan’s birthday party she was introduced to Chimanlal Desai who was busy with his upcoming film ‘Radhika’ being made under the banner of ‘National Studio’.  Nalini Jaywant was hardly 14 at that time. Chimanlal Desai expressed his wish to take Nalini into main lead of the film ‘Radhika’ which her father immediately refused. But Chimanlal didn’t give up. Ultimately Nalini’s father had to accept Chimanlal ’s offer. 

A 1941 release film ‘Radhika’ was directed by Chimanlal Desai’s son Virendra Desai.  Hero of this film was Harish who later directed movies like ‘Kali Topi Lal Rumal’, ‘Do Ustad’, ‘Naqli Nawab’ and ‘Burmah Road’ with the name of ‘Tara Harish’. Nalini Jaywant sang 3 solos and 4 duets with co-singers Harish, Noorjehan and Maruti Rao in ‘Radhika’ which were composed by Ashok Ghosh.  Out of initial 5 her 3 films  e.g. ‘Radhika’, ‘Bahen’, ‘Nirdosh’ (all 1941) were made under the banner of ‘National Studio’ and rest 2 i.e. ‘Aankh Micholi’ (1942) and ‘Adaab Arz’ (1943) were produced by ‘Amar Pictures’. Nalini sang 4 songs in ‘Bahen’, 6 in ‘Nirdosh’, 7 in ‘Aankh Micholi’ and 4 songs in ‘Adaab Arz’. 

In the year 1945 Nalini got married to Virendra Desai who was many years older than her and was already married and had children from his first marriage. Well known Hindi writer Upendra Nath ‘Ashk’ who had won the ‘Bengal Board Of film Journalists’ best dialogue writer’s award for ‘Filmistan Film Company’s’ 1945 release ‘Mazdoor’, in his book ‘Filmi Duniya Ki Jhalkiyaan’ writes that because of the second marriage, Virendra Desai had been disowned/dispossessed / ousted by his family from home and business.  In such circumstances Nalini Jaywant’s ties with ‘National Studio’ and ‘Amar Pictures’ had also been snapped.  Thus, Virendra Desai and Nalini had to sign a contract with ‘Filmistan film Company’ and they shifted to Malad in a rented bungalow which was very near to ‘Filmistan’.

According to ‘Ashk’ films like ‘Shikari’, ‘Safar’ and ‘Eight Days’ were made under the banner of ‘Filmistan’ which Veera, Paro and Shobha were given the leading role in but neither Nalini was chosen as actress nor Virendra Desai was given chance to direct. They were being paid a collective salary of Rs.2,000/- every month but without any work. According to ‘Ashk’, perhaps the reason behind was a condition put forward by Virendra Desai and Nalini that Nalini would act only in the films directed by Virendra Desai. But ‘Ashk’ also says, “may be Nalini’s success as actress had compelled Shashdhar Mukerji to leave Nalini jobless for 2 years under the contract so to keep the way clear for Naseem who was the heroine of ‘Filmistan’s first film ‘Chal Chal Re Naujawan and this speculation appeals me more.” At that time ‘Ashk’ was writing a story for a film for Virendra Desai, also says in his book, “then only I came to know that how tense and frustrated were the director Virendra Desai and Nalini Jaywant internally who otherwise always looked happy and content externally” and “Nalini’s name had vanished from the audience’s memory during that period. Nalini had committed a blunder to put forward the condition of Desai’s direction. “

According to Nalini Jaywant, her marriage lasted for just 3 years and they separated in 1948. During that period only one film of Nalini’s i.e ‘Venus Pictures’ ‘Phir Bhi Apna Hai’ (1946) was released. This film was being made since very long time. Nalini’s career gained momentum after her contract with ‘Filmistan’ got over and simultaneously she divorced Virendra Desai and she worked in many films like  ‘Anokha Pyar’ with Dilip Kumar, ‘Gunjan’ with Trilok Kapoor (both 1948), ‘Chakori’ (1949) with Bharat Bhooshan, ‘Ankhein’ with Shekhar and Bharat Bhooshan, ‘Hindustan hamara’ with Dev Anand and ‘Muqaddar’ with Kishore Kumar and Sajjan (all 1950). Film ‘Gunjan’ was produced under the banner of ‘Nalini Productions’ and was directed by Virendra Desai and Producer-director Devendra Goyal’s film ‘Ankhein’ was the debut film of music director Madan Mohan’s. Nalini Jaywant sang 6 songs in ‘Gunjan’, 1 song in ‘Chakori’ and 3 songs in ‘Muqaddar’. But none of these films could leave an impression on box office.

In true meaning, Nalini tasted the stardom with ‘Filmistan’s ‘Samadhi’ which was released in the year 1950. Nalini’s another film ‘Sangram’ which was made in the same year under the banner of ‘Bombay Talkies’ was also a hit.  In both the films Nalini’s hero was Ashok Kumar and the music director was C.Ramchandra.

The decade of 1950’s was extremely hectic for Nalini. She acted in total 41 films during the years 1951 to 1960 which included ‘Bhai Ka Pyar’, ‘Ek Nazar’, ‘Jadoo’, ‘Nand Kishor’, ‘Naujawan’ (all 1951) / ‘Doraha’, ‘Jalpari’, ‘Kaafila’, ‘Naubahar’, ‘Saloni’ (1952) / ‘Rahi’, ‘Shikast’ (1953) / ‘Baap Beti’, ‘Kavi’, ‘Lakeerein’, ‘Mehbooba’, ‘Naaz’, ‘Nastik’ (1954) / ‘Chingari’, ‘Jai Mahadev’, ‘Lagan’, ‘Munimji’, ‘Railway Platform ’, ‘Raj Kanya’ (1955) / ‘Aan Baan’, ‘Awaaz’, ‘Durgesh Nandini’, ‘Fifty Fifty’, ‘Hum Sab Chor Hain’, ‘Insaaf’, ‘Sudarshan Chakra’, ‘Bhaarti’ (1956) / ‘Kitna Badal Gaya Insaan’, ‘Miss Bombay ’, ‘Mr.X’, ‘Neelmani’, ‘Sheroo’ (1957) / ‘Kala Pani’, ‘Milan’ (1958) / ‘Maa Ke Ansoo’ (1959) / ‘Mukti’ (1960). ‘Naaz’ (1954) was the first Hindi film to be picturised out of country as it was shot in Cairo and London. ‘Munimji’ (1955) was the debut film of director Subodh Mukerji  as Sunil Dutt entered the film world with same year release film ‘Railway Platform’. Nalini Jaywant once again sang 1 song in the film ‘Chingari’ (1955).

Nalini Jaywant acted in only 5 films in 1960’s.  These were, ‘Amar Rahe Ye Pyar’, ‘Senapati’ (1961) / ‘Girls Hostel’, Zindagi Aur Hum’ (1962) / ‘Bombay Racecourse’ (1965). Film ‘Amar Rahe Ye Pyar’ was produced by well-known character actor Radhakishan (Mehra) who was originally from an Old Delhi based Khattri family. This film was directed by his close friend Prabhu Dayal who had earlier worked as an actor in the films ‘House No. 44’, ‘Munimji’, ‘CID’, ‘Nai Dilli’, ‘Dushman’, ‘Lajwanti’, ‘Kala Bazar’ and ‘Ek Ke Baad Ek’ and  had been an assistant-director in ‘Faraar’ and ‘Kala Paani’. Unfortunately, ‘Amar Rahe Ye Pyar’ flopped miserably that Radhakishan who came under huge debt ultimately committed suicide by jumping off the terrace of his building situated at Pedder Road.

Prabhu Dayal had already acted with Nalini Jaywant in the film ‘Munimji’.  During the making of the film ‘Amar Rahe Ye Pyar’ they both got married. Later on, Prabhu Dayal acted in the films like ‘Hum Dono’ and ‘Duniya’ and also worked as assistant director in ‘Hum Dono’, ‘Tere Ghar Ke Saamne’ and ‘Gambler’. But Nalini Jaywant bid goodbye to the film world and got busy with handling household after the release of ‘Bombay Racecourse’.  After a gap of 18 years she was once again seen in 1983 release ‘Nastik’ in the role of hero Amitabh Bachchan’s mother but she couldn’t enjoy working in this new avatar of a character artist.  According to Nalini, “this was a blunder to accept that film as whatever I was narrated about the role, all turned out to be false on screen. This was none less than a shock for me thus I decided never to look back to the film world.”  

If we leave apart 1983 release ‘Nastik’ then Nalini played the main lead in total 60 films during her career span of 25 years between 1941 to 1965.  Among these, the 1946 release ‘Phir Bhi Apna Hai’ was re-released in the year 1951 with a new title of ‘Bhai Ka Pyar’. Nalini Jaywant’s pairing with Ashok Kumar and Ajit was widely appreciated and she acted in 10 films with Ashok Kumar and the same number of films with Ajit. Film ‘Nirdosh’ (1941) and ‘Nand Kishore’ (1951) were bilinguals which were made in Marathi also. Nalini also acted in a Gujrati film ‘Warasdaar’ made in the year 1948. Apart from this she sang total 39 songs in 9 films.  

After Prabhu Dayal’s death in the year 2001 Nalini Jaywant lived alone in her huge bungalow. Her brother’s son and his family lived nearby who took care of her needs. Nalini Jaywant, who was born on 18th February 1926 died at the age of 85 years on 22 December 2010. Her last rites and post demise rituals were performed by her nephew from his own residence. Immediately after Nalini’s death the locked gate of her bungalow made compelled media to speculate as per their own manner and without knowing the truth, Nalini’s demise was declared as ‘suspicious death’ by the media. This conduct of Indian and especially the electronic media shows its mindlessness as well as hollowness.

13 comments:

  1. Thank you Shishir for the very informative article on Nalini Jaywant's life. I hadn't known about her two marriages. You are right about the rumours spread in media.
    Thanks also for the charming fotos, which are rarely seen elsewhere.
    Keep the good work going!

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  2. Tks Shishir just wanted to confirm about Bombay Race Course The film took about 11 years to complete and release Ultimately it was the doyen of Filmistan Tola Ram Jalan who financed the film and let his studio for shooting the last portions which made the release possible Another intresting trivia about the film was that the censor refused to give the certificate at the last moment a La Sholay type situation and the reason was that K N Singh who played Ajit father could go scott free as a villain A last minute shooting was org at Filmistan where the cops come to arrest him

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  3. the above comments about Bombay race course have been submitted by me Sundeep Pahwa

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  4. Sir, I wish to know whether the harmonium player in song Leke pahala pahela pyar in hindi movie cid 1956 is late Mr Prabhu Dayal or someone else.

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  5. harmonium player in the song "leke pehla pehla pyar" in CID (1956) was shyam kapoor who also worked as an assistant director with gurudutt (in mr.& mrs.55, pyasa & kagaz ke phool)...n the girl in the song with him was sheila vaz. (@mr.Subhash Gothwal).

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  6. Shishir Krishna Sharmaji I thank you very much.

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  7. I am Raj K Mehra , nephew of Radha Kishan Mehra d director/_producer of Amar Rahe ye pyar, we had a very nice time with Nalini Jaywant & prabhu Dayal,since de were all close ,and even after d death of my uncle Radha krishan , Mali I Jaywant & prabhu dayal used to come to Delhi at our house in Shakti Nagar, Delhi, & I remember my child hood when I used to go to Mumbai at their house at 1 Union park chembur for a month or so during my summer school holidays, I have dose good memories with Nalini aunty , she was so sweet DAT every time when I used to go to Mumbai an stay with them ,on my return she used to present me DAT scooter with small three tieres in it,, the last I visited her was when I went to Mumbai in 1995 or so.

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  8. dear mr. raj mehra, could you kindly send me your contact number/s on shishirkksharma@gmail.com ? would love to speak to you to write about radhakishan ji in BHD...it would be a pleasure as we do not find much information about him on net or through any other source...awaiting a positive reply...thnx.

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  9. Brief but quite descriptive, thanks a lot mr. Shishir k sharma.

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  10. great acterss....nalini jayawant...nice and useful information.....

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  11. nice information about the great actor of her time!

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  12. Dear Mr Raj Mehra , could you please help me identify Prabhu Dayal in the film CID.? Is he the one with a cap (havaldar Ram Singh?)

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